Wednesday 29 October 2014

श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्वक सेवा करना ही भक्ति है

एक महान वैष्णव आचार्य श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी श्रीमन नित्यानंद प्रभु जी के मन्त्र शिष्य हैं और जिन्होंने श्री चैतन्य भागवत की रचना की | इन्होंने चैतन्य भागवत में भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी की विभिन्न लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया | १६ वर्ष की आयु में इन्होंने नित्यानंद प्रभु जी से दीक्षा ग्रहण की | वे श्रीमन नित्यानंद प्रभु जी के प्रियतम शिष्य थे |
श्री वृन्दावन दास ठाकुर जी की माता का नाम श्री नारायणी देवी था जो श्रीवास पंडित जी के भाई की कन्या थी | जिस समय भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित के घर में 'महाभाव प्रकाश' लीला की और वहां एकत्रित भक्तों को अपने स्वरूप के दर्शन करवाए उस समय नारायणी देवी केवल ४ वर्ष की बच्ची थी | चैतन्य भागवत में इस लीला का वर्णन इस प्रकार है : "जिस समय श्री गौरांग महाप्रभु जी ने श्रीवास पंडित जी के घर में अपने स्वरूप को प्रकाशित किया उसी समय महाप्रभु जी ने नारायणी को कृष्ण नाम उच्चारण करने को कहा, नारायणी उस समय मात्र ४ वर्ष की थी और वह 'कृष्ण-कृष्ण' उच्चारण करती हुई कृष्ण प्रेम में पागल होकर, नेत्रों से अश्रुधारा बहाती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी |"
नारायणी देवी के पुत्र हुए वृन्दावन दास ठाकुर, नारायणी को किस प्रकार महाप्रभु जी की कृपा प्राप्त हुई इसका उल्लेख चैतन्य भागवत में किया गया है : "नारायणी की भगवान में बहुत निष्ठा थी, वह केवल एक छोटी बच्ची थी किन्तु स्वयं भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रीवास पंडित के घर उनकी भतीजी नारायणी को अपना महाप्रसाद देकर विशेष कृपा प्रदान की |"
निश्चित ही यह भगवान चैतन्य महाप्रभु की कृपा थी जो वृन्दावन दास ठाकुर जी ने नारायणी के गर्भ से जन्म लिया | श्री गौरांग और नित्यानंद जी तो वृन्दावन दास ठाकुर जी का जीवन व प्राण हैं |
श्रीगौर गणोंदेश दीपिका ग्रन्थ में लिखा है कि ब्रज लीला में कृष्ण की स्तन-धात्री अम्बिका की छोटी बहन किलिम्बिका ही नारायणी देवी के रूप में चैतन्य लीला में अवतरित हुई और अम्बिका श्रीवास पंडित जी की पत्नी मालिनी देवी के रूप में आईं | इस प्रकार अम्बिका और किलिम्बिका, दोनों बहनें पुनः गौरांग महाप्रभु जी की लीला में मालिनी देवी और नारायणी देवी के रूप में अवतरित हुई |
नारायणी देवी पर महाप्रभु जी की कृपा
नारायणी देवी ४ वर्ष की थी जब महाप्रभु जी ने उसे कृष्ण प्रेम प्रदान किया, उस समय नारायणी श्रीवास पंडित और मालिनी देवी के साथ श्रीवास आंगन में ही रहती थी | एक दिन अचानक महाप्रभु जी श्रीवास पंडित को सशंकित देखकर उनके घर में गए और दरवाज़े को लात मारकर खोलते हुए श्रीवास से पूछने लगे, "तुम किसकी पूजा व ध्यान कर रहे हों, जिसकी तुम पूजा कर रहे हों, देखो ! वह तो मैं ही हूँ |" ऐसा कहकर महाप्रभु जी बैठ गए तथा उन्होंने श्रीवास की स्त्री, पुत्र, नारायणी और समस्त सम्बन्धियों को अपने ईश्वर रूप का दर्शन करवाया |
तत्पश्चात महाप्रभु जी ने सबको आश्वासन दिया की चाँद काज़ी से भय करने की कोई आवश्यकता नहीं है और परमात्मा रूप में महाप्रभु जी ने काज़ी का ह्रदय परिवर्तित कर दिया और सर्वत्र हरिनाम संकीर्तन का, कृष्ण नाम : "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||" का प्रचार किया, महाप्रभु जी ने सभी बद्ध जीवों से, यहाँ तक कि जानवरों से भी हरे कृष्ण महामंत्र करवाया और सबको कृष्ण प्रेम में विभोर कर दिया | श्रीवास पंडित के घर महाप्रभु जी ने नारायणी को बोला, "नारायणी ! कृष्ण नाम उच्चारण करो |" ऐसा सुनते ही नारायणी 'कृष्ण-कृष्ण' बोलते हुए प्रेम में पागल हों गयी और पृथ्वी पर गिर पड़ी |
गौरहरि ने सदैव नारायणी पर विशेष कृपा की और स्वयं अपना उच्छिष्ट नारायणी को दिया | महाप्रभु जी के मायापुर से जाने के कुछ समय बाद नारायणी का विवाह हो गया, जिस समय वह गर्भवती थी तो उनके पति का देहांत हो गया और उसी समय मालिनी देवी उन्हें लेकर मामगाछी आ गई |
गौर लीला में वृन्दावन दास ठाकुर जी का आविर्भाव
श्री वृन्दावन दास ठाकुर जी श्रीकृष्णद्वैपयान वेदव्यास जी का ही अवतार हैं | वेदव्यास जी ने वेदों की रचना की और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का श्रीमद भागवतम में वर्णन किया उसी प्रकार श्री वृन्दावन दास ठाकुर जी ने श्री चैतन्य भागवत ग्रन्थ में गौर लीला का (भगवान श्रीकृष्ण जो गौरहरि के रूप में इस कलियुग में अवतरित हुए) वर्णन किया | श्री चैतन्य भागवत ग्रन्थ का नाम पहले श्रीचैतन्य मंगल था | चैतन्य भागवत में वृन्दावन दास ने भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी की लीलाओं को अति मनोहर रूप से बताते हुए श्रीमद भागवतम की सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान की : भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्वक सेवा करना ही भक्ति है |
श्री भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर जी ने श्रीचैतन्य भागवत की व्याख्या करते हुए लिखा, "मामगाछी में वृन्दावन दास ठाकुर का जन्म हुआ और बाल्यावस्था में नारायणी देवी ने यहीं पर ही उनका पालन-पोषण किया |" उन्होंने १६ वर्ष की आयु में नित्यानंद प्रभु से मंत्र दीक्षा ग्रहण की और उसके बाद वे नित्यानंद प्रभु के साथ प्रचार में गए | जब वे देनूर ग्राम में पहुंचे तो नित्यानंद प्रभु के आदेशानुसार उन्होंने वहां रहकर प्रचार किया और उन्हें कभी भी भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु के साक्षात् रूप से दर्शन नहीं हुए | वह सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु जी की शक्ति श्री जाह्नवा देवी जी के साथ गौर पूर्णिमा की शुभ तिथि पर खेतरी ग्राम गए |
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी ने चैतन्य चरितामृत की अंत्य लीला के २०वे अध्याय के ८२वे श्लोक में वृन्दावन दास ठाकुर जी की महिमा वर्णन करते हुए लिखा : "वृन्दावन दास ठाकुर नित्यानंद प्रभु जी के प्रिय पार्षद हैं और उन्हें श्रीचैतन्य लीला का व्यासदेव कहा जाता है |"
जिस प्रकार व्यासदेव जी ने श्रीकृष्ण लीलाओं का श्रीमद भागवतम और अन्य पुराणों में वर्णन किया उसी प्रकार श्रील वृन्दावन दास ठाकुर ने श्रीचैतन्य भागवत में चैतन्य लीला का वर्णन किया |

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